आवाहनं न जानामि न जानामि विसर्जनम्।
पूजां चैव न जानामि क्षमस्व परमेश्वर॥
मंत्रहीनं क्रियाहीनं भक्तिहीनं जनार्दन।
यत्पूजितं मया देव! परिपूर्ण तदस्तु मे॥
अन्यथा शरणं नास्ति, त्वमेव शरणं मम ।
तस्मात्कारुण्यभावेन, रक्ष मां परमेश्वर |
यत्पूजितं मया देव! परिपूर्ण तदस्तु मे॥
अन्यथा शरणं नास्ति, त्वमेव शरणं मम ।
तस्मात्कारुण्यभावेन, रक्ष मां परमेश्वर |
यानि कानि च पापानि जन्मान्तरकृतानि च।
तानि सर्वाणि नश्यन्तु प्रदक्षिणपदे पदे।।
ॐ अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोऽपि वा।
यः स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यन्तरः शुचिः॥
शुक्लाम्बरधरं विष्णुं/देवं शशिवर्णं चतुर्भुजम् ।
प्रसन्नवदनं ध्यायेत् सर्वविघ्नोपशान्तये ॥
ॐ केशवाय नमः ! ॐ माधवय नमः ! ॐ नारायणाय नमः ! ॐ हृषिकेशाय नमः !!
तानि सर्वाणि नश्यन्तु प्रदक्षिणपदे पदे।।
ॐ अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोऽपि वा।
यः स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यन्तरः शुचिः॥
शुक्लाम्बरधरं विष्णुं/देवं शशिवर्णं चतुर्भुजम् ।
प्रसन्नवदनं ध्यायेत् सर्वविघ्नोपशान्तये ॥
ॐ केशवाय नमः ! ॐ माधवय नमः ! ॐ नारायणाय नमः ! ॐ हृषिकेशाय नमः !!
नमः सूर्याय चन्द्राय मंगलाय बुधाय च
गुरुः शुक्र शनिःभिः च राहवे केतवे नमः ||
कराग्रे वसते लक्ष्मीः करमध्ये सरस्वती ।
करमूले (स्थित गौरी ) तु गोविन्दः प्रभाते करदर्शनम ॥
नवग्रह शांति मंत्र:
सूर्य मंत्र: ॐ ह्रां ह्रीं ह्रौं स: सूर्याय नम:।
चंद्र मंत्र: ओम श्रां श्रीं श्रौं सः सोमाय नमः ।
मंगल मंत्र: ओम क्रां क्रीं क्रौं स: भौमाय नम: ।
बुधा मंत्र: ओम ब्रां ब्रीं ब्रौं सः बुधाय नमः ।
गुरु मंत्र: ॐ ग्रां ग्रीं ग्रौं सः गुरुवे नमः।
शुक्र मंत्र: ओम द्रां द्रीं द्रौम सः शुक्राय नमः ।
शनि मंत्र: ओम प्रां प्रीं प्रोम सह शनै नमः ।
राहु मंत्र - ॐ भ्रां भ्रीं भ्रौं सः राहवे नमः।
केतु मंत्र - ॐ स्रां स्रीं स्रौं सः केतवे नमः।
हनुमान मंत्र
गौमाता मंत्र
डेली मंत्र
पाद्य
अर्ध्य
आचमन
स्वयं का शुद्धीकरण
पूजन सामग्री का शुद्धीकरण या पवित्रीकरण
पाद्य- भगवान के पैर धुलने की भावना से जल चढ़ाया जाता है।
अर्घ्य- केशर, चंदन, अक्षत यानी बिना टूटे चावल, फूल मिले जल से भगवान का स्वागत किया जाता है।
आचमन- भगवान को शुद्धि के लिए हाथ पर जल दिया जाता है।
स्नान- भगवान को शुद्ध जल से स्नान करवाया जाता है।
वस्त्र- स्नान के बाद भगवान को वस्त्र चढ़ाए जाते हैं। प्रतीक रूप में पूजा का धागा भी दिया जाता है।
आभूषण- भगवान को उनके स्वरूप के अनुरूप गहने व शस्त्र चढ़ाए जाते हैं।
गंध- भगवान का गंध द्वारा सत्कार करते हैं व उनके शरीर पर गंध लगाई जाती है।
अक्षत- बिना टूटे चावल पूजा कर्म के अखंड फल के प्रतीक के रूप में चढ़ाए जाते हैं।
पुष्प- भगवान को उनकी रुचि के ताजे फूल व मालाएं भेंट की जाती हैं।
धूप- सुगंधित धूप से भगवान को प्रसन्न किया जाता है।
दीप- दीप जलाकर भगवान को ज्योति दिखाई जाती है। भावना होती है कि दीपक के समान प्रकाशवान बनने की।
नैवेद्य- खाने की शुद्ध वस्तुएं फल आदि का भोग लगाया जाता है।
आचमन- तीन बार जल देकर भगवान से शुद्धि की प्रार्थना ही जाती है।
तांबुल- पान, सुपारी, लौंग, इलायची आदि मुख शुद्धि के रूप में प्रदान की जाती है। भेंटस्वरूप दक्षिणा भी दी जाती है।
स्तव प्रार्थना- स्तुति कर दु:ख-विघ्न को समाप्त करने व सर्व कल्याण की प्रार्थना भगवान से जाती है।
आरती नमस्कार- षोडशोपचार पूजा का समापन आरती, मंत्र पुष्पांजलि व नमस्कार से होता है। आरती भगवान के स्वरूप के स्मरण के लिए है। अपनी इच्छाएं पुष्पों के साथ भगवान को समर्पित करना पुष्पांजलि है। नमस्कार के रूप में भगवान को अपना अहंकार समर्पित करना चाहिए।
चंद्र मंत्र: ओम श्रां श्रीं श्रौं सः सोमाय नमः ।
मंगल मंत्र: ओम क्रां क्रीं क्रौं स: भौमाय नम: ।
बुधा मंत्र: ओम ब्रां ब्रीं ब्रौं सः बुधाय नमः ।
गुरु मंत्र: ॐ ग्रां ग्रीं ग्रौं सः गुरुवे नमः।
शुक्र मंत्र: ओम द्रां द्रीं द्रौम सः शुक्राय नमः ।
शनि मंत्र: ओम प्रां प्रीं प्रोम सह शनै नमः ।
राहु मंत्र - ॐ भ्रां भ्रीं भ्रौं सः राहवे नमः।
केतु मंत्र - ॐ स्रां स्रीं स्रौं सः केतवे नमः।
हनुमान मंत्र
गौमाता मंत्र
डेली मंत्र
पाद्य
अर्ध्य
आचमन
स्वयं का शुद्धीकरण
पूजन सामग्री का शुद्धीकरण या पवित्रीकरण
पाद्य- भगवान के पैर धुलने की भावना से जल चढ़ाया जाता है।
अर्घ्य- केशर, चंदन, अक्षत यानी बिना टूटे चावल, फूल मिले जल से भगवान का स्वागत किया जाता है।
आचमन- भगवान को शुद्धि के लिए हाथ पर जल दिया जाता है।
स्नान- भगवान को शुद्ध जल से स्नान करवाया जाता है।
वस्त्र- स्नान के बाद भगवान को वस्त्र चढ़ाए जाते हैं। प्रतीक रूप में पूजा का धागा भी दिया जाता है।
आभूषण- भगवान को उनके स्वरूप के अनुरूप गहने व शस्त्र चढ़ाए जाते हैं।
गंध- भगवान का गंध द्वारा सत्कार करते हैं व उनके शरीर पर गंध लगाई जाती है।
अक्षत- बिना टूटे चावल पूजा कर्म के अखंड फल के प्रतीक के रूप में चढ़ाए जाते हैं।
पुष्प- भगवान को उनकी रुचि के ताजे फूल व मालाएं भेंट की जाती हैं।
धूप- सुगंधित धूप से भगवान को प्रसन्न किया जाता है।
दीप- दीप जलाकर भगवान को ज्योति दिखाई जाती है। भावना होती है कि दीपक के समान प्रकाशवान बनने की।
नैवेद्य- खाने की शुद्ध वस्तुएं फल आदि का भोग लगाया जाता है।
आचमन- तीन बार जल देकर भगवान से शुद्धि की प्रार्थना ही जाती है।
तांबुल- पान, सुपारी, लौंग, इलायची आदि मुख शुद्धि के रूप में प्रदान की जाती है। भेंटस्वरूप दक्षिणा भी दी जाती है।
स्तव प्रार्थना- स्तुति कर दु:ख-विघ्न को समाप्त करने व सर्व कल्याण की प्रार्थना भगवान से जाती है।
आरती नमस्कार- षोडशोपचार पूजा का समापन आरती, मंत्र पुष्पांजलि व नमस्कार से होता है। आरती भगवान के स्वरूप के स्मरण के लिए है। अपनी इच्छाएं पुष्पों के साथ भगवान को समर्पित करना पुष्पांजलि है। नमस्कार के रूप में भगवान को अपना अहंकार समर्पित करना चाहिए।
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